चक्रवात के चार दिन बाद भी नही दिरुस्त हो सकी गोण्डा के तकरीबन 80 प्रितश्त गांवो की विधुत लाईन

चक्रवात के चार दिन बाद भी नहीं दुरुस्त हो सकीं विद्युत लाईनें



वज़ीरगंज भगोहर में ध्वस्त होकर सड़क पर पड़े हैं बिजली की तार

संविदाकर्मी मांग रहे रूपया, एसडीओ से की गयी शिकायत

सालू खान

गोण्डा। मनकापुर व डुमरियाडीह फीडर के ग्रामीण क्षेत्रों की ध्वस्त विद्युत लाइनें चक्रवाती तूफान के चार दिन बाद भी नहीं सुधर सकी हैं, जिससे इस विकराल गर्मी में लोग बेहाल हैं। यहाँ एक तरफ जहाँ लोग प्रचण्ड गर्मी के प्रकोप से त्राहि त्राहि कर रहे हैं, वहीं दूसरी ओर शासन के सख्त निर्देशों के बावजूद विभागीय अधिकारी आंखों में राहत की पट्टी बाँध कर चैन की नींद सो रहे हैं। कच्छपि गति से हो रहे बिजली बहाली के काम में विभागीय कर्मी पूरी तरह उदासीन हैं और अधिकारी अपने में मस्त हैं।
 मुख्यमंत्री आदित्यनाथ योगी ने बिजली विभाग के अधिकारियों को सख्त निर्देश दे रखा है कि अगर कहीं ट्रांसफार्मर जलता है तो उसे 72 घंटे में बदला जाए, जबकि अन्य खामियों को 12 घंटे के भीतर दूर किया जाए, मगर ये वो विभाग है जो सुधरने का नाम ही नहीं ले रहा है। रही बात जेई व एस.डी. ओ. की तो इनसे फोन पर बात करना आसमान से तारों को तोड़ने के बराबर है। अगर फोन उठ भी जाये तो वहां से ज्यादातर आश्वासन का घूँट ही पिलाया जाता है। इतना ही नहीं संविदा कर्मियों के बारे में तो जगजाहिर है कि मामला चाहे ध्वस्त लाइनों का हो या फिर कहीं अन्य फाल्ट हो, इन्हें सिर्फ रुपये चाहिए। हम जिक्र करते हैं मनकापुर व डुमरियाडीह फीडर से सम्बंधित क्षेत्रों का जहाँ चक्रवाती तूफान के चार दिन बाद भी बिजली के तार ज्यों के त्यों रोड पर पड़े हैं और अधिकारी व कर्मचारी मौन हैं।

  

बताते चलें कि मनकापुर फीडर के अन्तर्गत काज़ीदेवर, छाछपारा कानूनगो, छाछपारा मतवल्ली, कस्टुआ, चकसड़, मांदे, गंगापुर, खखरैया, चैनवापुर आदि में जहाँ विद्युत लाइन ध्वस्त होकर जमींदोज है, वहीं डुमरियाडीह फीडर के बेलभरिया, तकिया, लोहारन पुरवा, हारीपुर, दसौतिया आदि गांवों में भी विद्युत लाईने अभी तक ध्वस्त हैं, जबकि वज़ीरगंज के झिलाही रोड भगोहर में विद्युत तारे रोड पर पड़े हैं, जो राहगीरों को खतरे का दावत दे रहे हैं। संविदा कर्मचारियों की बात करें तो चर्चा है कि इस फीडर के खुटेहना में इनके द्वारा क्षेत्र में फ्यूज़ उड़ने पर 400 रुपये व अन्य मामूली खराबी को ठीक करने के लिए 200 रुपये की मांग की जाती है।  यहाँ नियम क़ानून को ताक पर रखकर खुलेआम उपभोक्ताओं का शोषण किया जाता है, मगर विभागीय अधिकारयों व कर्मचारियों को कोई फर्क नहीं पड़ता है, शायद शासन के निर्देशों से खिलवाड़ करना इनकी फितरत में शामिल हो चुका है।

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