सालू खान
वजीरगंज का दबंग दरोगा बना न्याय का सौदागर
न्याय की आस में जानकी प्रसाद की पथरा गयीं आंखें
गोण्डा। यहाँ की हकीकत सुनाने लगेंगे, तो पत्थर भी आंसू बहाने लगेंगे! किसी शायर की ये पंक्तियां वज़ीरगंज थाने के पीड़ितों पर बिल्कुल स्टीक बैठती हैं, जहाँ एक बेखौफ और बेमुरव्वत दरोगा पीड़ितों को कानूनी पैंतरे का डर दिखाकर उससे आज़ाद करने के लिये खुलेआम उनसे रुपयों का सौदा करता है और शासन – प्रशासन की आँखों में धूल झोंककर आये दिन अपने काले कारनामों को बखूबी अंजाम देता है। काश, सीएम की नज़रें यहाँ भी इनायत होतीं, जहां सम्बंधित अधिकारियों की निष्क्रियता के चलते व कुछ भ्रष्ट सफेदपोश नेताओं का आशीर्वाद पाकर कानून की नुमाइंदगी करने वाला यह दरोगा खाकी को शर्मसार करने पर आमादा है !
इसका जीता जागता प्रमाण थाना वज़ीरगंज का है, जहाँ तैनात दरोगा प्रमोद अग्निहोत्री का घृणित खेल किसी से छिपा नहीं है। थाना वजीरगंज क्षेत्र के उदयपुरग्रन्ट निवासी जानकी प्रसाद चौहान को बेकसूर होने के बावजूद खाकी के नुमाइन्दों के चलते कानून की चक्की में पिसना पड़ा और उसे कानून को ताक पर रखने वाले दरोगा के हाथ 25 हज़ार रुपयों का नजराना पेश करना पड़ा। दरोगा की इस कारस्तानी की पड़ताल करने जब ‘इंडिया ए टू जेड न्यूज़’ की टीम उदयपुर ग्रंट पहुंची तो पीड़ित जानकी ने जो दर्द बयां किया वो चौंकाने वाला तो है ही, साथ ही न्याय व्यवस्था को भी कटघरे में खड़ा करने के लिए पर्याप्त है।
उसने बताया कि गांव के ही करीब उसका साखू , कटहल व सागौन का बाग है, जिसका पूरा कागजात उसके पास है। बावजूद इसके हतवा के एक युवक ने फर्जी मुकदमा दायर कर रखा है। पीड़ित जानकी का कहना है कि वह बंवर (झाड़) साफ़ करके नुकसानदेह लकड़ियों को काट रहा था। इसी बीच ग्राम हतवा के उक्त युवक ने लोगों के उकसाने पर थाने में जाकर मेरी शिकायत कर दी। तत्पश्चात मुझसे रुपये ऐंठने के चक्कर में कानून के रखवालों ने पीड़ित को कागज़ दिखाने हेतु थाने बुलया। पीड़ित ने बताया कि वह जैसे ही थाने पहुंचा उसका कागज़ देखने के बजाय उसे लॉकअप में डाल दिया गया और खाकी के नुमाइन्दों ने उससे यह कहा कि आचार संहिता के कारण तीन माह जेल में पड़े रहोगे। अगर छुटकारा पाना है तो 50 हज़ार देने होंगे। मरता क्या न करता। किसी तरह मामला 25 हज़ार पर तय हुआ और सलाखों से जानकी को आज़ाद कर दिया गया। बात यहाँ ख़त्म नहीं होती है।
पीड़ित ने बताया कि वज़ीरगंज थाने के दरोगा प्रमोद अग्निहोत्री ने उससे जब 25 हज़ार रूपए वसूल लिए तो बाद में गांव में जाकर उसे अलग बुलाकर कहने लगे कि अगर तुम बचना चाहते हो तो तुम्हे उन रुपयों के अतिरिक्त अभी और 50 हज़ार रुपये देने होंगे, नहीं तो अलग से लकड़ियां लाकर 4 /10 का मुकदमा कायम कर दिया जायेगा, तब न्ययालय का चक्कर काटते रहोगे। यह सुनकर पीड़ित का माथा चकराने लगा। पीड़ित के अनुसार जब उसने बाद में दरोगा अग्निहोत्री से फोन पर संपर्क साधा तो उन्होंने दबाव बनाते हुए कहा कि हमने तुम्हारे लड़के से प्रकरण के बारे में कई बार कहा मगर तुम नहीं मिले। इसमें तुम्हारे दोनों बच्चे भी फंसे हैं। गवाही ले आना। तुम्हारा मर मुकदमा सही करा दूँ। जब पीड़ित ने कहा कि साहब जो 25 हज़ार दिया है क्या ये इस 50 हज़ार में से कम नहीं होगा ? इस पर दरोगा ने कहा वो तो बड़े साहब आपको छोड़ने की खातिर लिए थे। यह सुनकर पीड़ित ने जब कहा कि साहब 50 से कुछ कम नहीं हो पायेगा ? तो दरोगा ने यह कहकर फोन काट दिया कि ठीक है, पहले थाने पर आओ, फिर बात करते हैं। यहाँ सोचने का विषय तो यह है कि उन फरियादियों को न्याय कौन दिलाएगा, जिनका शोषण खुद थाने की खाकी ही करती हो ? ऐसे में वो सीएम व अधिकारियों को छोड़ जाए तो जाए कहां ?
पीड़ित का कहना है कि बाग का पूरा कागज़ात होने के बावजूद उसे कानून की चक्की में पीसा गया और जबरन थाने के लॉकअप में डाला गया, जहाँ छोड़ने के लिए दरोगा ने 25 हज़ार लिए और बाद में 50 हज़ार रुपयों का अतिरिक्त डिमांड करते रहे। रूपये देने के बाद भी न्याय दूर की कौड़ी नज़र आ रही है।
कानून के सताए पीड़ित को नवागत एसपी व डीएम से न्याय की उम्मीद जगी है। उसका कहना है कि अगर यहाँ भी न्याय न मिला तो वह सीएम के दरबार का रुख अख्तियार करेगा।
वज़ीरगंज थानाध्यक्ष गोरखनाथ सरोज का कहना है कि यह प्रकरण मेरे आने से पहले का है, जिसके बारे में मुझे किसी ने अवगत नहीं कराया और अगर ऐसा हुआ है तो कानून सबके लिए बराबर है, चाहे वह आम आदमी हो या फिर कानून का रक्षक ही क्यों न हो। कानून से बढ़कर कोई नहीं है।
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